मालिया , चोकसी का क़र्ज़ माफ़ नहीं हुआ है। लोन राइट-ऑफ बैंकों की मदद करता है.इस पर राजनीति कर भ्रम फैलाना उचित नहीं।
लोन राइट-ऑफ, कानूनी माध्यम से उधारकर्ता से वसूली के बैंक के अधिकार को नहीं छीनता है।
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के द्वारा 68 हजार करोड़ रुपये के ऋण , जिसमे 50 टॉप डिफॉलटेर्स शामिल है , के
लोन राइट-ऑफ किये जाने पर राजनीति जोर शोर से हो रही है. लेकिन सायद आपको यह मालूम न हो कि लम्बे समय से चले रहे ये
एनपीए को एक अवधि के बाद ऋण को राइट-ऑफ कर बैंको के पास
प्रावधान के लिए अलग से निर्धारित धन उपलब्ध हो जाता है और बैलेंस शीट भी क्लीन हो जाती है.
लोन राइट-ऑफ, बैंकों द्वारा उनकी बैलेंस-शीट को साफ करने के लिए उपयोग किया जाने वाला एक उपकरण है। यह खराब ऋण या गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के मामलों में लागू किया जाता है। यदि ऋण कम से कम तीन लगातार तिमाहियों के लिए चुकौती चूक के कारण खराब हो जाता है, तो एक्सपोज़र (ऋण) बंद लिखा जा सकता है।
कैसे लोन राइट-ऑफ बैंकों की मदद करता है
मान लीजिए कि कोई बैंक किसी कर्जदार को 1 करोड़ रुपये का ऋण वितरित करता है और उसे इसके लिए 10 प्रतिशत का प्रावधान करना आवश्यक है। इसलिए, बैंक उधारकर्ता को चुकौती पर चूक करने के लिए इंतजार किए बिना 10 लाख रुपये अलग से निर्धारित रखता है।
यदि उधारकर्ता 50 लाख रुपये का बड़ा डिफ़ॉल्ट करता है, तो बैंक डिफ़ॉल्ट वर्ष में बैलेंस शीट में खर्च के रूप में इसका उल्लेख करते हुए अतिरिक्त 40 लाख रुपये को बंद कर सकता है। लेकिन जैसा कि ऋण लिखा गया है, यह मूल रूप से प्रावधान के लिए अलग से निर्धारित 10 लाख रुपये भी मुक्त कर वह धन अब व्यवसाय के लिए बैंक के पास उपलब्ध हो जाता है।
खराब ऋणों को राइट-ऑफ करने का एक अतिरिक्त लाभ भी है। लोन राइट-ऑफ, कानूनी माध्यम से उधारकर्ता से वसूली के बैंक के अधिकार को नहीं छीनता है। खराब ऋणों को राइट-ऑफ के बाद, उनके खिलाफ की गई किसी भी रिकवरी को रिकवरी के वर्ष में बैंक के लिए लाभ माना जाता है। इससे बैंक की बैलेंस शीट क्लीन व् बेहतरीन हो जाती है।
Aryan Prem Rana
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