बजट टिप्पणी; वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20:20 बजट पिच पर सिक्सर क्यों नहीं लगाये ?


लोकतंत्र में जनता ने देश को आगे ले जाने की जिम्बेवारी सरकार पर छोड़ रखी है तो हमारा यह अधिकार  बनता है कि हम उनके प्रयासों का पूरी तरह अच्छा या बुरा आकलन व विश्लेषण अवश्य  करे. लेकिन विश्लेषण करने के कुछ तौर तरीके व् आयाम होते है सही समझ ,जानकारी, तथ्य, ज्ञान व् उदेश्य के बिना किसी नतीजे पे पहुंचना तो सरासर खुल्लम खुल्ला बेइमानी कही जा सकती है। 

मीडिया वर्ग के जानकर व् विषेशज्ञ पत्रकार बंधु भी अगर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लम्बे भाषण को आलोचना  का मुख्य केंद्र बिंदु बना रहे हैं और एलआईसी में से सरकार की कुछ हिस्सेदारी को शेयर बाजार के माध्यम से निवेशकों को बेच कर पूंजी जुटाने के प्रयास  कोसरकार के हाथ में सीमित संसाधनों की वजह से कोई बड़ा पाथ ब्रेकिंग बोल्ड ऐलान  न होना आदि को सरकार की नाकामयाबी बता रहे है तो अशिक्षित व् कम शिक्षित वर्ग से क्या उम्मीद कर सकते है. वे तो जो सुनेगे उसी को सत्य या असत्य मानेगे  और अगर राजनिति से खिन्न है तो कन्फ्यूज्ड हो जायेगे ।  ऐसा करने से हमे बचाना चाहिए ताकि बजट के महत्वपूर्ण पहलुओं से देश का ध्यान न भटके।

हमें इस बात पर भी अवश्य गौर करना चाहिए कि  वित्त मंत्री द्वारा दिया गया यह  अब तक का सबसे लंबा बजट भाषण इस बात की पुष्टि है कि देश का आर्थिक परिदृश्य कितना जटिल है और यह भी दर्शाता है कि एक बजट में सभी समस्याओं को हल करना कितना मुश्किल है। वित्त मंत्री ने "ज्वलंत चुनौतियों का सामना करने के लिए साहसपूर्वक प्रयास किया है और उनका भाषण 130 करोड़  लोगो की आकांक्षाओ  का सारांश  मात्र  है भले ही विपक्ष ,किसी बर्ग या व्यक्ति विशेष को अच्छा लगे या न लगे.  उनके द्वारा कवर किए गए विषयों की लंबी सूची केंद्र सरकार से नागरिकों की अपेक्षाओं की सीमा को दर्शाती है।   

हालाँकि हमने  पिछले  कई उच्च- खर्च वाले बजटों से अर्थव्यवस्था में तेजी की उम्मीद की थी लेकिंन ऐसा नहीं हुआ और हो सकता है अगले वित्वर्ष भी सायद विकास दर में बढ़ोतरी की रफ़्तार धीमी ही रहे । इसलिए निष्पक्ष व् स्पष्ट  रूप से बजट अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए काफी नहीं  है. उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा में सुधार के लिए अभी भी कई क्षेत्रों में रेडिकल परिवर्तन की आवश्यकता है और बजट को इतना ज्यादा हाइप भी नहीं किया जाना चाहिए कि अगर उम्मीद अनुसार बड़े ऐलान न हो तो शेयर बाजार धड़ाम से गिर कर निवेशकों को लाखो करोड़ का (नोशनल) नुकसान  न झेलना पड़े

वैसे भी इनकम टैक्स में छोटी छोटी राहत से व्यक्तिगत तौर पर कोई प्रभावी फर्क नहीं पड़ता लेकिन सरकार के खजाने पर जरूर पड़ता है। वस्तुतः देश का करदाता यह चाहेगा की सरकार  इनकम टैक्स में थोड़ी छूट की बजाय इस पूंजी का उपयोग सरकार स्वयं कुछ बड़ा व उपयोगी कार्य (रोजगार के नए अवसर पैदा हो) करने पर करे तो अर्थव्यवस्था को जल्दी पटरी पर लाया जा सकता है. 


पिछले साल (2019) अंतरिम बजट में मोदी सरकार ने गरीब किसानो को ६००० रुपये प्रति वर्ष  देने का वादा किया और उसके तहत सरकार के अनुसार लगभग ये रकम डायरेक्ट जमा की गयी है , मैंने अपने गांव में पूछा तो पता  चला की सबको रकम मिल गयी है।  यह एक अच्छा कदम है और इसी तरह के और कदम सरकार को गरीबो के वेलफेयर के लिए उठाने चाहिये। 

और जो सरकारी उपक्रम घाटे में चल रहे हैं उनको फिलहाल पुनर्जीवित करने मे काफी खर्च  वहन करना देश की क्षमता से बाहर हो सकता है. स्वतन्त्र भारत में सरकारें ऐसे उपक्रमों मे एलआईसी, सार्वजानिक बैंकों व देश का बड़ी मात्रा में पूंजी डूबो चुके हैं.  सरकार को ऐसे फिजूल और निरर्थक खर्च से बचना होगा. 

मेरा मानना है वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले सभी पहलुओं को छूने की साहसिक कोशिश की हैचाहे वह किसानो की आर्थिक स्थिति को बेहतर करनेआम आदमी का ख्याल उपभोक्ताओ की क्रय शक्ति को बढ़ानेआयकर अधिनियम के सरलीकरण के प्रयास हो शिक्षा,कृषिएमएसएमई,आईटी हो बजट में उठाए गए नए कदमों का प्रभाव दीर्घकालिक रूप में अवश्य दिखाई देगा और अब यहां से देश की जीडीपी में बढ़ोतरी होना सुरु हो जाएगी और अगले बजट तक सब 8%-10 %ग्रोथ दर की बात पर विश्वास कर पाएंगे

अतः भारत की  ही नही अपितु  वैश्विक स्तर पर बड़ी अर्थ व्य्वस्थाओ  के बिगड़े हालात ,  वित्तीय घाटे व् सरकारी ख़जाने की सीमा को देखते हुऐ वित्त मंत्री ने इस बजट को  सरकार की अच्छी बुद्धिमता का  परिचय देते हुये  भले ही कोई बोल्ड सुधार नहीं किये है , लेकिन कम से कम कोई नुकसान तो नहीं किया है। यह  बजट का ऑउटले इन कठिन आर्थिक हालात में ठीक परतीत होता है।

अगर आमदनी रुपया है तो खरचा ९९.९  पैसा से ज्यादा न करने में ज्यादा समझदारी है।  वित्त मंत्री ने  सबका ख्याल रखते हुये इस बजट से डगमगाती अर्थव्यवस्था को अच्छा संतुलन देने का प्रयास किया है.  एक बार अच्छा संतुलन स्थापित हो जाय तब अर्थव्यवस्था को बड़े व् बोल्ड सुधारो के द्वारा तेज गति दी जा सकेगी। कॉर्पोरेट व् शेयर बाजार  जगत को यह समझाना होगा कि 20:20 क्रिकेट मैच की तरह टेस्ट मैच में हर बॉल पर सिक्सर नहीं मारा जा सकता परिस्थिंति अनुसार सिंगल लेने व् स्ट्राइक रोटेट करने पर भी कम जोखिम लेते हुऐ लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। एफएम  ने भी इस बजट में यही किया है. 


लेखक :आर्यन प्रेम राणा , फाउंडर एंड चीफ मेंटरआर्याना मातासको 

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