एलआईसी आईपीओ: इक्विटी मार्केट में लाखो नये निवेशकों को आकर्षित करने का बड़ा अवसर



वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पिछले सप्ताह अपनी बजट प्रस्तुति के दौरान जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के विनिवेश की घोषणा के तुरंत बाद केंद्र सरकार के आलोचकों ने भारत की इस सबसे बड़ी वित्तीय संस्था के  हितधारकों-कर्मचारियों और ग्राहकों के बीच भ्रम और भय पैदा करने की कोशिश की है।

लेकिन आज इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, LIC ने  अपने  हितधारकों के साथ सम्बाद व्  समझ   स्थापित करने  लिए पब्लिक रिलेशन (PR) की प्रक्रिया सुरु की है. यह एक बुद्धिमान कदम है जो तेजी से फैल रही अफवाह के बाजार को ठंडा करके  उनके सभी  हितधारकों को विश्वास में लेने में मदत करेगी। 

मोदी सरकार के आलोचक LIC में शेयर बिक्री को संस्था के पूर्ण निजीकरण ’के रूप में पेश कर रहे हैं जिसका अर्थ है कि या तो वे भ्रामक हैं या आईपीओ (आरंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव) के बारे में उन्हें  कोई ज्ञान  नहीं है।

सार्वजनिक संस्था या उपक्रम  का पूर्ण  निजीकरणं तब होता है जब सरकार अपना पूर्ण स्वामित्व और नियंत्रण  किसी निजी  कंपनी या संस्था को  हस्तांतरण करती है। आईपीओ का अर्थ है प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक निजी तौर पर आयोजित या सार्वजनिक क्षेत्र की संस्था / कंपनी पहली बार सार्वजनिक रूप से अपने शेयरों की पेशकश करके सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनी बन जाती है। आईपीओ के माध्यम से कंपनी या संस्था का नाम स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया जाता है।

एलआईसी विनिवेश के मामले में, भारत सरकार पूर्ण हिस्सेदारी नहीं बेच रही है, बल्कि कुछ शेयर स्टॉक मार्केट में  एक विशेष मूल्य प्रति शेयर के तहत पेश करेगी  जिससे  सरकारी खजाने पर राजकोषीय बोझ को कम करने और विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए धन जुटाने व्  राजस्व की कमी को पूरा करने के लिए पूंजी जुटाने का प्रयास है। 

यह कोई नयी बात भी नहीं है, पूर्व में भी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कई संस्थाओं को स्टेट बैंक से लेकर ओएनजीसी, कोल इंडिया आदि को  शेयर मार्किट में सूचीबद्ध करके  डिस-इन्वेस्टमेंट किया है, सूचीबद्ध सरकारी संस्थाओं  की यह सूची काफी लंबी है और इसलिए एलआईसी के बारे में भी चिंतित होने की कोई बात नहीं है। वास्तव में लिस्टिंग एलआईसी को अधिक अनुशासित, प्रतिस्पर्धी बनाएगी और वित्तीय बाजारों तक निवेशकों को पहुंच प्रदान करेगी और वैल्यू अनलॉक करेगी।

एलआईसी भारत की सबसे बड़ी वित्तीय संस्था है और इसका  डिसइनवेस्टमेंट  एक बड़ा साहसिक निर्णय है। एलआईसी  हर साल शेयर बाजारों में  औसतन 55,000 करोड़ रुपये से 65,000 करोड़ रुपये का निवेश करती है और भारतीय शेयर बाजार  में सबसे बड़ी निवेशक है।

और यदि एलआईसी के शेयर स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होते है तो यह आसानी से बाजार के मूल्यांकन के मामले में देश की शीर्ष सूचीबद्ध कंपनी के रूप में उभर सकती है  

इस आईपीओ से एलआईसी के कर्मचारियों, विमा धारकों सहित किसी भी हितधारक के लिए हानिकारक नहीं होगा क्योंकि इसका मालिकाना हक और प्रबंधन भारत सरकार के पास रहेगा. वास्तव में आईपीओ लिस्टिंग से उन्हें काफी फायदा हो सकता हैएलआईसी आईपीओ के दौरान अपने कर्मचारियों को सब्सक्रिप्शन पर अच्छी छूट दे सकती है और अगर अच्छी प्रीमियम पर शेयर सूचीबद्ध  (जो बाजार में पहले से ही उम्मीद है) हुऐ तो यह उनके लिये काफी लाभकारी हो सकता है  

वास्तव  में भारतीय इक्विटी बाजार के सबसे बड़े निवेशक को निवेशकों के लिए एक बेहतरीन निवेश विकल्प बनते देखना सचमुच अद्भुत होगा। इस आईपीओ की जागरूकता, पैठ और प्रभाव इतना विशाल होगा कि यह लाखों भारतीयों को नए निवेशकों के रूप में आसानी से इक्विटी बाजार में आकर्षित कर सकता है।

इसमें प्रबंधन के तहत 31.11 लाख करोड़ की संपत्ति, लगभग 300 मिलियन पॉलिसी धारक, 111,979 कर्मचारी, 1,537,064 व्यक्तिगत एजेंट, 342 कॉर्पोरेट एजेंट, 109 रेफरल एजेंट, 114 ब्रोकर और 42 बैंक हैं जो जनता से जीवन बीमा व्यवसाय की याचना कर रहे हैं।

इसलिए, आईपीओ मार्ग के माध्यम से एलआईसी विनिवेश के बारे में भ्रम फैलाना उचित नहीं है, और यह  प्रयास सरकार को जरुरी पूंजी  जुटाने और राजस्व प्राप्तियों में कमी को भरने में मदद कर सकता है।

आर्यन राणा, संस्थापक और चीफ मेंटर , आर्याना मातासको  

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